Wednesday, November 28, 2007

मेरा वीकएंड

पिछले वीकएंड थैंक्सगिविंग था। मेरे परिवारवालों ने यह फैसला किया था की हम लोग न्यू जर्सी जायेंगे, हमारे पहेले पडोसियों को मिलाने. हम लोग साथ अथ साल एक ही जगह राहे थे. पहले पहले, एक हे अपर्त्मैन्त कोम्प्लेक्स में रहते थे, और जब घर लिया तू एक ही नेय्बोर्हूद में लिया. रेशमा आंटी और किरण अंकल हमारे बोहुत ही करीबी दोस्त हैं. अमरीका में हमारा कोई रिश्तादार टू नहीं है लेकिन, कुछ करीबी दोस्त हैं, और इन में से रेशमा आंटी और किरण अंकल हैं. जब वे पिछले गर्मी की चुतियों में न्यू जर्सी मूव हो गए टू हमें बोहुत ही दुख हुआ. एक खली पं सा महसूस हुआ. जब भी कुछ होता था टू हम उनके घर चले जाते थे या वे बच्चों को लेकर हमारे घर आ जाते थे. कोई भी त्यौहार या कुछ भी होता था टू हम अखातेय ही सब मानते थे. मेरा कोई चाचाजी या चचिजी नहीं हैं, टू उन की जगह अंकल और आंटी ने ले ली थी. इसी लिए हमने सोचा की हम लोग इस छुट्टी में उनको मिलने जायेंगे. हम लोग बुधवार को निकले और गाड़ी चलते चलते गुरुवार सुबह पोह्न्चेय. थोडी देर आराम करने के बाद, हम लोग प्रिन्स्तों का काम्पुस देखने गए. शाम को हम एडिसन गए गोल गापेय और चाट खाने, उसके बाद हमने भार्तिये-चीन खाना खाया. यह सब लिखते ही मेरे मुँह में पानी अजय है. शुक्रवार को हम सुबह चार बजे उठ कर शॉपिंग गए! काफी मजा आया. शाम को हम मन्हात्तन घूमने गए, और वापसी में हम लिमो में आये. शनिवार को हमने घर पर ही लंच किया और फिर हम एक नए मंदिर के दर्शन करने गए. मंदिर तो बोहुत ही सुन्दर था तो मुझे बोहुत ख़ुशी हुई के हमारे दर्शन भी हो गए. रविवार को हमने निकालना था, लेकिन देर से उठने के कारन हम लोग निकल नहीं पाए. हमारी वापसी सोमवार कि हुई. पुरा वीकेंड काफी मजेदार था, ज्यादा काम भी नहीं मिल हुआ था, तो आराम और मजे कि कॉम्बिनेशन ने इस वीकएंड को काफी मजेदार बना दिया!

Wednesday, November 14, 2007

अगर कोइ मुझे दूर से देखे तो मुझे नहीं लगता है कि उनको लगे गा कि इतनी बड़ी होकर भी मैं छोटों बच्चों कि तरह दर टी हूँ। काफी चीजों से मुझे दर लगता है, और इस ब्लोग में मैं आपको कुछ चीजों के बारों में बताऊगी। एक चीज जो है जो मुझे बोहुत डरती है हैं डरावनी फिल्में। जब भी कोई भूत या खूनी या मोंस्टर सीन में होता है, तो में झट से अपनी आखें बंद कर लेती हूँ। मुझे पता है कि वोह असली नहीं है, लेकिन मुझे लगता है कि कभी शायद ऐसा कुछ हो भी सकता है। कभी कभी तो सीन बोहुत खराब होतें हैं, जब भी कोई अड़ यां कोई कमर्शियल आती है, तो मैं अपनी आँखें बंद करती हूँ और अपने दोस्तों को बोलती हूँ कि जब एड खतम हो जाये, तो मुझे बतादें। मुझे अँधेरे से भी बोहुत डर लगता है। मुझे लगता है कि कहीं से भी कोई निकल कर मुझे पकड़ सकता है। मुझे अपने अपार्टमेंट में अकेले रहने से भी डर लगता है, मेरी रूम-मेट जब्भी घर नहीं होती, तो में किस्सी को भी अपार्टमेंट में बुलालेती हूँ। जब में अकेले सड़क पर चलती हूँ रात को या घर ड्राइव कर के जा रही होती हूँ तो भी में किस्सी न किस्सी को फोन कर लेती हूँ। मुझे ने पता कि मुझे इतना डर क्यों लगता है, लेकिन ठीख है, सब में कमियां तो होती हैं।

इस साल कि दिवाली

इस साल मेरे घर पर दिवाली फिर से मनाई गयी। दिवाली से दो तीन दिन पहले, हमने सफायें शुरू की। पूरे घर को चमका दिया। मैं यह तो नहीं कह सकती के मैंने खुद सफएं कीं थी, लेकिन मैंने घर को बोहुत अच्छी तारा सजाया था। चारों और दिए जालाये थे, और मम्मी ने बाहर लाईटेइन भी लगाई। हमारा घर पूरे नय्बुर्हूद में सबसे सजा हुआ घर था। पहले तो मम्मी और पापा काफी सारे लोगों के घर गए, सबको दिवाली की मुबारकबाद देने। फिर हमारे करीबी दोस्त हमारे घर आये। हमने मिल कर खूब मिठाईयां खाई, और थोडे से चुटकले वगेरा भी सुनाये। मामा और मामी भी काफी देर बेठे रहे थे। सब लोगों के जाने के बाद, हमने घर में पूजा की। फिर मम्मी पापा ऑफिस की पूजा करने चले गए। मैं, प्रतीक और माजी ने बैठकर थोडी सी हिन्दी फिल्म: कारन अर्जुन देखी। दिवाली वाले दिन टी.वी। चैनलों पर भी अच्छी अच्छी फिल्में दिखा रहे थे। जब पापा और मुम्मी लौटे तो हमने मिलकर खाना खाया और फिर आराम से टी.वी। देखा। पापा और प्रतीक तो जल्दी ही सोगाये थे, लेकिन मैंने और मम्मी ने रात को फुल्जदियाँ चलायी। यह थी हमारी दिवाली, ज्यादा शोर शराबा तो नहीं था, लेकिन परिवार के साथ वक़्त गुजारने का समय तो मिला।

Wednesday, November 7, 2007

मेरा इअसा शो का डांस

पिछले हफ्ते इअसा शो था।  में बोहुत गर्व से कई सकती हूँ की मेरी ५ महीनों की म्हणत सफल रही. पांच महीने पहले मैंने अपनी सहेली के साथ शो कोरीओग्रफेर के लिए तरी-आउट दीया था. तब हमें पता नहीं था की हमें 'जिप्सी' डांस मिले गा. पिछले साल की कोरेओग्रफेर और मैंने गर्मी की छुठीयों में काफी काम किया. हमने काफी सारे गाने चुन लिए, बस हमें अन्थ के लिए गाना नहीं मिल रहा था.  जब हमें हमारा ग्रुप दीया गया हम बोहुत ऊतेजित होगये थे, क्यूंकि सब्भी लोग हमारे डांस में हिस्सा लेने की लिए काफी खुश थे.  लगातार हम दो महीने डांस की तयारियाँ करते राहे. हर गाने के लिए हमें नये स्टेप्स बनाने थे. लड़कियों और लड़कों के स्टेप्स कभी अलग होते थे और कभी एक ही थे. हमने जो गानों पे डांस किया, वोह हैं: साकी साकी, मरहबा, मायया मायया, महबूबा और अन्थ में हमने सज्नाजी पर डांस किया. पिछले शुकर्वार को शो था, और मेरे सारे परिवार वाले और दोस्त दूर दूर से आये थे. सब्भी को डांस बोहुत पसंद आया. मैंने शनिवार को अपने डांस की विदेओ भी दिखी, और तब जाके मुझे चैन आया हमारा डांस वाके में ही अच्छा था. 

मेरा सबसे अच्छा दोस्त

दो साल पहले जब मैने अपना स्कूल फिनिश किया था, मुझे ऐसा लगता था के मैं फिर कभी इतने अच्छे दोस्त बना पाऊँगी. लेकिन कालेज के पहले साल में मैं हिन्दी कि क्लास में एक लड़के से मिली. मुझे क्या पता था कि वोह मेरे इतने करीब आजाएगा के उससे रोज़ बात न करूं तो मेरा दिन पूरा नहीं होता. लोग बोहुत बातें भी करते हैं-कि एक लड़का और लड़की सिर्फ दोस्त कैसे हो सकते हैं लेकिन हम किस्सी कि भी नहीं सुनते. मुझे पता है कि हमारे बीच सिर्फ दोस्ती ही है तो मुझे क्या ज़रूरत पड़ी किस्सी कि बातों पर गोर करने कि. कालेज के पहले साल से हमारी दोस्ती गहरी ही होती गयी. क्लास के बाद हम सीदा लीग जाते थे लंच खाने के लिए. उस सेमेस्टर के बाद, हम गर्मी कि चुतियों में भी मिलते रहे, कभी अ.र. रहमान के कंसर्ट या कभी नयी फिल्में देखने जाते। मेरी बोहुत सी सहेलियां हैं, लेकिन लड़कियों के साथ खूब ड्रामा भी आता है, इस्सी लिए मुझे मेरे सबसे आचे दोस्त के साथ वक़्त गुजरना अच लगता था. अगले साल, यानी कि मेरे कॉलेज के दूसरे साल में हमने इअसा शो भी किया, और फिर हमने एक नाटक में भी हिस्सा लिया. हम हमेशा हस्ती खेलते रहते हैं, और मुझे यह बोहुत अच्छा लगता है. पिछले गर्मी कि चुतियों में हमारे बीच बोहुत बड़ी लड़ाई हो गयी, और हमने दो तीन महीने एक दूसरे से बिल्कुल बात नहीं कि. मुझे बोहुत दुःख हुआ कि मेरा सबसे अच दोस्त मेरे से दूर हो गया. उसको हमारी दोस्ती से ज्यादा दृग्स से प्यार हो गया था, और इस्सी लिए हम अपने अलग रास्ते चले गए. इस साल कि शुरुवात में, उसका एक दो बारी फ़ोन आया, लेकिन मैंने उससे बिल्कुल बात नहीं कि, लेकिन तीसरी बारी मैंने उसका फ़ोन उठाया. वोह मेरेय्से मिलना चाहता था, और मेरे से कुछ बातें करना चाहता था। मैने उससे मिलने के लिये हाँ तो कह्दी लेकिन मुझे उससे बात करने का कोई शोंक नहीं था. उस दिन उसने मुझे बताया कि क्या क्या हुआ, उसका दिमाक कैसे चलने लग गया, और उसने बताया कि जो भी उसने किया वोह गलत था. दो तीन हफ्ते बाद मुझे लगा कि वोह सच्ची बदल न चाहता है, और मैंने उससे फिर से अपना लिया. अब हमारी दोस्ती पहले से भी पक्की है और में इस बात से खुश हूँ कि मुझे अपना सबसे अच दोस्त वापिस मिल्गाया.

Wednesday, October 31, 2007

खोसला का घोसला

खोसला का घोसला ऐसी फिल्म है जो आपको हसयेगे और दो मिनट बाद
रुला भी डे गी. इस फिल्म एक परिवार के ऊपर है: खोसला परिवार के
बारे में. इस परिवार में पांच सदसिये हैं: माता-पिता (क.क.
खोसला जो कि इस कहानी के मुखिया अभिनातय हैं), और तीन बचे (दो
लड़के और एक लड़की). खोसला परिवार एक माध्यम वर्ग परिवार होता
है, और क.क. खोसला ने इस परिवार के लिए बोहुत से सपने देखे
होतें हैं. इन में से एक सपना है कि एक बड़ा सा घर बनाए जिसमे
सब परिवार के सदस्ये एक साथ ख़ुशी से रहें. इस सपने को पुरा
करने के लिए, खोस्लाजी ने बोहुत से पैसे अखाते किये होतें है. जब
प्लोत खरीदने जातें हैं, तो बिचारे खोसला जी एक बोहुत बड़ी
साजिश में फस जातें हैं. जब उनको पता चलता है कि जो पैसे
उन्होने घर के लिए रख वय थे, वो पैसे बुरे हाथों में चले
गए हैं, पुरा परिवार ज़बरदस्त कोशिश करता है उस घर के प्लोत
को वापिस पानी के लिए. इस फिल्म में बोहुत सी चीजे दिखाते हैं,
जैसे कि एक परिवार का प्यार, अपने सपनों को पूरे करने कि द्रिड
निश्चय, और दिखातें है कि अलग तरीके के लोग ज़िंदगी भर
मिलते रहते है, और उनपर अँधा विश्वास नही करना चाहिऐ.

करवा चौथ

इस हफ्ते सोमवार को करवा चौथ था. मेरी मम्मी ने पूरा दिन न कुछ
पिया, न कुछ खाया जब तक चाँद नहीं निकला. यह त्यौहार साल में
एक ही बरी आता है, और उस दिन हर पत्नी अपने पति कि लंबी उमर के
लिए यह व्रत रखतीं हैं. इस व्रत के पीछे एक कहानी का हाथ है.
कहते हैं के बोहुत पहले एक रजा और रानी रहते थे. रानी के तीन
भाई थे, तो उसके पहले करवा चौथ पर, उसने व्रत रखा. वोह
पूरा दिन सूई धागे से काम करती रहती है (जो कि नहीं करना होता
है) जब उससे चंद नहीं दिखा, तो उसने अपने भाइयों को भेजा चंद
देखने के लिए. उसके भाइयों को खूब भूक लगी थी, तो उन्होनें
झूट बोलकर अपनी बहिन (यानी रानी) को खाना खिला दिया. जब वोह घर
लॉट टी है तो उसे पता चलता है कि उसके पति को बोहुत साड़ी
सूयें चुबी हूएं हैं. तो इस्सी लिए करवा चौथ पर बोहुत ध्यान
रखना पड़ता है ताकि ऐसा वैसा कुछ न हो.

Wednesday, October 24, 2007

इअसा शो

इस विश्वद्यालय में कहीं तारा के क्लब और ओर्गानिज़शन्स हैं। इन में से हैं एक जो हिन्दुस्तानी छात्रों को अपने संस्कृति से मिलाता है। में बात कर रहीं हूँ इअसा के बारे में। पिछले साल मैंने पहली बार यह संघटन में हिस्सा लिया। हर साल इअसा दिवाली के आस पास एक कल्तुरल शो पेश करता है। इस शो में हर तरह के भारतीय संगीत और नाच पेश किया जाता है। रास से लेकर भंग्रा, इस विश्विदाल्या के छात्रों को मौका मिलता है अपने मनपसंद गानों पर नाचने का और बोहुत सारे और हिन्दुस्तानी छात्रों से मिलने का। पिछले साल में बंजरण डान्स में थी। मैने पहले काफी सारे डान्स स्टेज पर किये होयें हैं, लेकिन उनमे से ज़्यादातर सिर्फ पुन्जबी गानों पर भंग्र किया हुआ था। तो इस बहाने मैंने बोल्ल्य्वूद के बोहुत मजेदार गानों पर चार हजार लोगों के सामने डान्स किया। शो कि तयारी में कम से कम दो तीन महीने तो लग ही जाते हैं, तो तब तक अबनी ग्रुप के और छात्रों से अची दोस्ती भी हो जाती है। हमारा डान्स पिछले साल काफी अच्छा था, और दूसरे दंन्स के छात्रों को भी ये पता था, इसी लिए काफी बाचों को इस साल बंजरण डान्स मी हिस्सा लेना था। इस साल में और मेरी एक सहेली बंजरण डान्स चोरेओग्रफ कर रहे हैं। शो अगले हफ्ते है, और जोरों से प्रक्टिस हो रही है। रोज़ कम से कम तीन चार घंटे प्रक्टिस होती है। इस साल डान्स में मेरा भाई, मेरी रूम्माते, और मेरी अची सहेली भी है। डान्स मुझे बोहुत अच्छा लगता है तो इसी लिए मुझे बोहुत जोश आता है। अगले हफ्ते मेरे सारे रिश्तादर और दोस्त आ रहें है मेरा डान्स देखना। आशा करती हूँ के सब तीख ताख जाये....

Wednesday, October 10, 2007

bharat ke bachchey


पिछले साल भारत कि सर्कार ने कानून बनाया था जिसमे लिखा था के चौदन साल या चोटी उमर के बचे काम नहीं कर सकते. लेकिन, सेव द चिल्ड्रेन ग्रुप ने यह पता लगाया है कि आज भी १.२ करोड़ बचे काम कर रहें है. इन में से २ लाख बचे या तो घरों में नौकार हैं, या फिर दुकानों में चोटी मोती नौकरियां करते हैं. इस कानून के मुताबेय ना तो यह गरीब बचे नौकर का काम कर सकते हैं, बल्की वे होटल, रेस्तौरांत, चाय कि दुकानों में भी नहीं काम करसकते. लेकिन इस कानून के पास होने सय कोई फरक नहीं पड़ा. आज भी उतने ही बचे यही काम कर रहें है. अब तक सिर्फ २२२९ केसेस ही रिपोर्ट हे हैं. सरकार कहती है कि इन बचों को कम पय्गर मिलती है, और अगर कोई वे गलत काम करें तो उन्हें पीटा भी जाता है, तो फिर सरकार इस कानून पर ज़्यादा दबाव क्यों नहीं दाल रही है. मेरे दादी के पास भी एक चोटी लडकी काम करती है, लेकिन हमें तो पता भी नहीं के यह कानून के खिलाफ है. मुझे लगता है कि सरकार को बेहतर अद्वेर्तिस्मेंत करनी चाहिऐ ताकी लोगों को पता तो चले.

Wednesday, October 3, 2007

भारत कि फिएल्ड हॉकी टीम

पिछले हफ्ते भारत क्रिकेट का २०-२० वर्ल्ड कप जीत के आयी. दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया और पाकिस्तान को हरा कर पहली बार भारत यह वर्ल्ड कप जीता. वापिस आकर पूरी टीम को बोहत समान मिला. उसी हफ्ते भारत कि फील्ड होकी तें पहली बारी असिया कप जीत कर आयी. क्रिकेतेर्स गो दीया गया समान देख कर, हॉकी तीम को बोहत बुरा लगा. वोह भी तो भारत के लिए जीत कर आये थे? तो फिर उनको इतना समान क्यों नहीं दिया गया? हर क्रिकेटर को पांच लाख रूपए मिले और हर होक्क्य प्लेयर को कुछ भी नहीं. यह सब देख कर हॉकी टीम ने स्ट्राइक कि. टीम के चार प्लेयर और उनका एक कोच हुन्गेर स्ट्राइक पर गये क्यूंकि उनको लगता है कि सब भार्तिये खिलाड़ियों को समान मिलना चाहिय ना कि सिर्फ क्रिकेतेर्स को. भारत का नेशनल खेल फिएल्ड हॉकी है तो फिर जब भारत कि टीम जीत कर आयी उनको इस जीत के लिए पहचाना क्यों नि गया. कहीं लोग कहते हैं कि हमारी सारकर में बोहत कोर्रुप्शन है और इसी लिए उनको उनकी जीत के लिए पहचाना नहीं गया. इस स्ट्राइक से शायद हमारी सर्कार और भारत के लोगों को थोड़ी अकाल अजये. सब खिलाड़ियों को पहचान और समान दिया जाना चैहेय आख़िर में वोह हमारे ही देश को रेप्रेसेंत करते हैं।

Sunday, September 16, 2007

मेरी मनपसंद हिंदी फिल्म

मेरी मनपसंद हिंदी फिल्म मय ब्रोदर निखिल है। इस फिल्म में भाई-बहन के रिश्ते कि अहेम्यत दिखाई है। इस फिल्म में जुही चावला और संजय सूरी हैं। संजय सूरी एक स्विम्मेर होता है जिसको एड्स कि बिमारी लग जति है। संजय सूरी, फिल्म में निखिल, एक छोटे से शहर से होता है जहाँ एड्स को बोहत बुरी नज़र से देखा जाता है। उसको जेल में भी बंद कर देते हैं ताकी किस्सी और को एड्स ना हो। निखिल के माँ बाप भी उसको घर से नीकाल देते हैं। इस हालत में उसकी बहन ही उसका सहारा बनती है। उसको अपने घर में उसकी देख बाल करती है। यह फिल्म मेरे दिल के बोहत करीब है क्योंकि में और मरा भाई एक दुसरे के बोहत नजदीक हैं । हम एक दूसरे से कुछ नहीं छुपाते। इस फिल्म को देख कर एहसास हुआ कि भाई बहन का रिश्ता मज़बूत होता है. मुझे याद है जब मेरा भाई सोलन साल का था तो उसको गाडी कि सख्त ज़रूरत थी. लेकिन मेरे माता पिता मन कर रहे थे. उसकी मद्दाद करने के लिए मैंने ममी और पापा से बात कि करती रही जब तक वोह मान नहीं गए. मेरा भाई सिर्फ मेरा भाई नहीं है, वोह मेरा सबसे अच दोस्त भी है. क्योंकि मैं मान ती हूँ कि परिवार से बदकार और कुछ नहीं है, मुझे यह फिल्म अचि लगती है क्योंकि इसमे दिखाया है कि बुरे वक़्त में अपने ही काम आते हैं.

मेरा वीकएंड

लंबे हफ्ते के बाद में वीकएंड का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। मेरा वीकएंड गुरुवार से शुरू हुआ। गुरुवार को में देत्रोइत गयी एक कंसर्ट देखने। दुनिया का मशहूर डी.जे. टिएस्तो को में देखने गयी। हम लोग ९ बजे के करीब निकले और ११ बजे पोह्न्चे। कोन्स्त्रुक्शन की वाजे से हमें १ घंटे के बजाये दो घंटे लगे। गाडी में हम लोग बातें-वतें करते रहे तो वक़्त जल्दी से गुज़र गया। जब हम पोह्न्चे तो बहार इतनी लंबी कितर लगी हुई थी तो हम ११.३० अन्दर पोह्न्चे। अगले तीन घंटे इतनी जल्दी गुज़रे। मैं और मेरे दोस्तो ने ख़ूब नचा। अगर हम एक दो घंटे और नाचते तो हमारी लातें टूट जति। हम अन अर्बोर चार बजे के करीब पोह्न्चे। अन अर्बोर में हमने नाश्ता देन्न्य'एस में किया। मैंने इतना स्वाद ओमेलेत्ते पहले कभी नही खाया, और ऊपर से भूक भी लगी थी तो सब ने खाना स्वाद से खाया।
अगले दिन मेरी १२ बजे क्लास थी। क्लास के बाद में वापिस घर गयी और फिर शाम को लंसिंग चलिगायी अपनी सहेलियों से मिलने। वहाँ पर हम सब अखाते मिलके पार्टी करने गायें। रात को आकर सबने ख़ूब बातें की और फिर आराम से सो गए। मुझे घर जल्दी जान था तो में ८ बजे उठ गयी। लेकिन बहार जाकर देखा तो मेरी गाडी के तीन पाये पुन्क्टुर हुए हुए थे। तो मेरा शनिवार अछा नही गुजरा। घर आकर मैंने फूटबाल गेम लगायी और खाते खाते देखती रही। थोड़ी देर सो भी गयी। उठने के बाद में अपनी पढ़ाई शूरू कि और रविवार भी पढ़ाई में गुजरा।