Sunday, September 16, 2007

मेरी मनपसंद हिंदी फिल्म

मेरी मनपसंद हिंदी फिल्म मय ब्रोदर निखिल है। इस फिल्म में भाई-बहन के रिश्ते कि अहेम्यत दिखाई है। इस फिल्म में जुही चावला और संजय सूरी हैं। संजय सूरी एक स्विम्मेर होता है जिसको एड्स कि बिमारी लग जति है। संजय सूरी, फिल्म में निखिल, एक छोटे से शहर से होता है जहाँ एड्स को बोहत बुरी नज़र से देखा जाता है। उसको जेल में भी बंद कर देते हैं ताकी किस्सी और को एड्स ना हो। निखिल के माँ बाप भी उसको घर से नीकाल देते हैं। इस हालत में उसकी बहन ही उसका सहारा बनती है। उसको अपने घर में उसकी देख बाल करती है। यह फिल्म मेरे दिल के बोहत करीब है क्योंकि में और मरा भाई एक दुसरे के बोहत नजदीक हैं । हम एक दूसरे से कुछ नहीं छुपाते। इस फिल्म को देख कर एहसास हुआ कि भाई बहन का रिश्ता मज़बूत होता है. मुझे याद है जब मेरा भाई सोलन साल का था तो उसको गाडी कि सख्त ज़रूरत थी. लेकिन मेरे माता पिता मन कर रहे थे. उसकी मद्दाद करने के लिए मैंने ममी और पापा से बात कि करती रही जब तक वोह मान नहीं गए. मेरा भाई सिर्फ मेरा भाई नहीं है, वोह मेरा सबसे अच दोस्त भी है. क्योंकि मैं मान ती हूँ कि परिवार से बदकार और कुछ नहीं है, मुझे यह फिल्म अचि लगती है क्योंकि इसमे दिखाया है कि बुरे वक़्त में अपने ही काम आते हैं.

मेरा वीकएंड

लंबे हफ्ते के बाद में वीकएंड का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। मेरा वीकएंड गुरुवार से शुरू हुआ। गुरुवार को में देत्रोइत गयी एक कंसर्ट देखने। दुनिया का मशहूर डी.जे. टिएस्तो को में देखने गयी। हम लोग ९ बजे के करीब निकले और ११ बजे पोह्न्चे। कोन्स्त्रुक्शन की वाजे से हमें १ घंटे के बजाये दो घंटे लगे। गाडी में हम लोग बातें-वतें करते रहे तो वक़्त जल्दी से गुज़र गया। जब हम पोह्न्चे तो बहार इतनी लंबी कितर लगी हुई थी तो हम ११.३० अन्दर पोह्न्चे। अगले तीन घंटे इतनी जल्दी गुज़रे। मैं और मेरे दोस्तो ने ख़ूब नचा। अगर हम एक दो घंटे और नाचते तो हमारी लातें टूट जति। हम अन अर्बोर चार बजे के करीब पोह्न्चे। अन अर्बोर में हमने नाश्ता देन्न्य'एस में किया। मैंने इतना स्वाद ओमेलेत्ते पहले कभी नही खाया, और ऊपर से भूक भी लगी थी तो सब ने खाना स्वाद से खाया।
अगले दिन मेरी १२ बजे क्लास थी। क्लास के बाद में वापिस घर गयी और फिर शाम को लंसिंग चलिगायी अपनी सहेलियों से मिलने। वहाँ पर हम सब अखाते मिलके पार्टी करने गायें। रात को आकर सबने ख़ूब बातें की और फिर आराम से सो गए। मुझे घर जल्दी जान था तो में ८ बजे उठ गयी। लेकिन बहार जाकर देखा तो मेरी गाडी के तीन पाये पुन्क्टुर हुए हुए थे। तो मेरा शनिवार अछा नही गुजरा। घर आकर मैंने फूटबाल गेम लगायी और खाते खाते देखती रही। थोड़ी देर सो भी गयी। उठने के बाद में अपनी पढ़ाई शूरू कि और रविवार भी पढ़ाई में गुजरा।